Friday, August 16, 2013

वो बेवज़ा सी मुस्कान


सर्दी  की धूप थी  …
हवाएं अंगड़ाई ले रहीं थीं  …
पतझड़ का मौसम था,
सूखे पत्ते गिर रहे थे,
मानो पत्ते नहीं बारिश की बूँदें थीं …
ठंडी हवा गुजरती थी , और कानों   में कुछ कहजाती  थी ।

चिड़ियों के गाने गूँज रहे थे,
राहें धुंद की रजाई हलके से खोलीं थीं ,
दिन की गरमाहट के तरफ़ धीरे से बढ़ रहीं थीं ,
और हम   …
चुपके से चले जा रहे थे ,
न जाने क्या सोच रहे थे ,
न जाने किस बात पे उदास थे ।

अचानक सर उठाके देखा
नज़र आया एक प्यारा सा चेहरा
वोह था नहीं अनजाना  …
पर ना ही था कोई अपना  …
एक बेवज़ा सी मुस्कान खिल उठी उसपे ,
और छलक गयी एक बेवज़ा सी ख़ुशी ।

दिल की सारी उलझनें  जैसे धुल गयीं …
गुम हो गयीं उस मुस्कान की रौशनी में …

हम फिर चलदिये उसी तरह उसी राह पे,
पर इस बार हमारे चेहरे पे था एक ज़ेवर  …
मुस्कान का ज़ेवर ,
उस बेवज़ा सी मुस्कान का ज़ेवर ।

होगी वो एक मामूली सी मुस्कान किसीके लिए,
बेवाज़ा जो थी   …

पर इस दिल के लिए वो थी  अनमोल ।
क्यूंकि उसमे छुपी थी उम्मीद ...

दिन की गरमाहट को गले लगाने की.…
रात की ठण्ड में सिमट जाने की । 

(wrote on 26 Jan 2013, for all those people who make my day with their smile :) )