सर्दी की धूप थी …
हवाएं अंगड़ाई ले रहीं थीं …
पतझड़ का मौसम था,
सूखे पत्ते गिर रहे थे,
मानो पत्ते नहीं बारिश की बूँदें थीं …
ठंडी हवा गुजरती थी , और कानों में कुछ कहजाती थी ।
चिड़ियों के गाने गूँज रहे थे,
राहें धुंद की रजाई हलके से खोलीं थीं ,
दिन की गरमाहट के तरफ़ धीरे से बढ़ रहीं थीं ,
और हम …
चुपके से चले जा रहे थे ,
न जाने क्या सोच रहे थे ,
न जाने किस बात पे उदास थे ।
अचानक सर उठाके देखा
नज़र आया एक प्यारा सा चेहरा
वोह था नहीं अनजाना …
पर ना ही था कोई अपना …
एक बेवज़ा सी मुस्कान खिल उठी उसपे ,
और छलक गयी एक बेवज़ा सी ख़ुशी ।
दिल की सारी उलझनें जैसे धुल गयीं …
गुम हो गयीं उस मुस्कान की रौशनी में …
हम फिर चलदिये उसी तरह उसी राह पे,
पर इस बार हमारे चेहरे पे था एक ज़ेवर …
मुस्कान का ज़ेवर ,
उस बेवज़ा सी मुस्कान का ज़ेवर ।
होगी वो एक मामूली सी मुस्कान किसीके लिए,
बेवाज़ा जो थी …
पर इस दिल के लिए वो थी अनमोल ।
क्यूंकि उसमे छुपी थी उम्मीद ...
दिन की गरमाहट को गले लगाने की.…
रात की ठण्ड में सिमट जाने की ।
(wrote on 26 Jan 2013, for all those people who make my day with their smile :) )
(wrote on 26 Jan 2013, for all those people who make my day with their smile :) )